Friday 23 November 2012

क्या करूँ..














"
तकलीफ में हूँ मैं
क्या करू.....?
रोती हूँ तो तू परेशान है
न रोऊ तो मैं
कहाँ जाऊँ, क्या करूं
अब तो आंसू भी साथ नही देते
बह जाते हैं आखों से
नीर की तरह
तकलीफ में हूँ मैं
क्या करूँ......???

आ जाओ ना...












"
आ जाओ न दिल उदास है
इस दिल को सिर्फ तेरी तलाश है
घंटो सोचती हूँ तुझको
फिर चेहरा छुपा लेती हूँ
तेरी बाहों का इंतज़ार है
धुप में , तन्हाई में
दर्द की गहराई में
तुझे ढूँढती हैं आँखें
फिर नज़रे झुका लेती हूँ
तेरे दीदार को बेकरार है
आ जाओ न , कि दिल उदास है..
"

ज़िंदगी



"
अश्को को बह जाने दो
बहारो को आने दो
मौसम को लहराने दो
कलियो को खिलखिलाने दो
इन ज़ख्मो को सहलाने दो
जिंदगी का मज़ा तो आने दो
मुझे उसके इश्क में डूब जाने दो
बस ज़माने में मोहब्बत फ़ैलाने दो
खुशियों की घडियां दिल में बसने दो
मुझे बस अपने करीब तो आने 
दो.."

दर्द















दर्द के मयखानो से कुछ मय उठा लाया हूँ
तेरी इन आँखों के दर्द उठा लाया हूँ
जिंदा हूँ मैं कि ये सच बता आया हूँ
कौन है ये शख्स जिसे अपना मर्ज़ बता आया हू
कई जन्मों से तुझसे दूर था
आज तुझे अपना फ़र्ज़ बता आया हूँ..

Tuesday 30 October 2012

सफर













ह्रदय का स्पंदन और
डूबती साँसों का बंधन
आंसुओ की कतार
जब होती है दिल के पार
वक्त की हकीकत
करती है दिल को तार 
रोकती हैं ये आहें मुझे
कैसे करूँ इनकार
बस चलते जाना है मुझे
इन निगाहों के तरकश के पार
हाँ ये ह्रदय का स्पंदन
कहता है रुको नही
बस चलती रहो जब तक
वक्त न रोके तुम्हारी रफ्तार

Sunday 21 October 2012

कागज की कश्ती














इस कशमकश में जिंदगी गुजार दी हमने
कि वक्त से किस्मत उधार ली हमने 

डरते रहे उम्र भर डूबने से और
कागज़ की कश्ती पानी में उतार दी हमने

प्याले




इन प्यालो से कह दो
हमें न तरसाया करें
मयखाने में ही सही
हमारे पास तो आया करें
जी चाहे इन्हें लबों से लगा लें
इन्हें कहिये थोडा तो झुक जाया करें
कहते हैं शराब ज़हर है
फिर हमें क्यों ये बहलाया करे
दिल चाहता है ये ज़हर पीना
चाहे रोज मर जाया करें
इन प्यालो से कह दो
हमें न तरसाया करें....

Friday 19 October 2012

तन्हाई















दिल की गहराइयों में तू है
मेरी लंबी तनहाइयों में तू है
रुसवाईयों में तू है
दिल की खामोश रुबाईयों में तू है
तेरे बिन मैं कुछ नही
मेरी इन डूबी हुई
परछाईयों में तू है....

Wednesday 17 October 2012

ख्वाहिश















इन ऊँची अट्टालिकाओं से
कभी पूछती हूँ सवाल
तुम्हें कितना दूर है जाना
यही रुकोगी या कहीं
और है छा जाना
आवाज़ आती है उन 
ऊँची इमारतों से
के बस दिल करता है
यही पे रुक जाना

कही ऐसा न हो कि
हमारे उड़ने की ख्वाहिश
हमें बेसब्र न कर दे
और कही हो न जाये
ये जहां बेगाना......

व्यथा


तस्वीर....
एक अधमरे जीवन की
मासूम अंधेरो की
खत्म होती साँसों की
लाल रक्त से सरोबार
क्षत विक्षत...लथ पथ..
हमने सुनी थी जिसकी आहात
जिसकी साँसों को दबा दिया
जन्म लेने से पहले ही
माँ की कोख में ही
खत्म कर दिया गया जीवन
फिर से वही दरिंदगी
फिर वही वहशियत
इंसान की आंखों में
उसके बदनुमा इरादों में
एक बार फिर शर्मसार हुई
इंसानियत....
कब तक ये होगा
कब तक बेटियां ये दर्द सहेंगी
हां.....मैंने देखी एक मार्मिक
तस्वीर......